बॉम्बे उच्च न्यायालय ने जेट एयरवेज के पूर्व मालिक नरेश गोयल के बैंक खाते को “धोखाधड़ी” घोषित करने वाले बैंक ऑफ इंडिया के निर्णय को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति आर. आई. छागला की अध्यक्षता में सुनाए गए इस आदेश में नरेश गोयल के खाते को धोखाधड़ी घोषित करने के बाद की गई सभी कार्रवाई भी रद्द कर दी गई है, जिसमें किसी भी केंद्रीय जांच एजेंसी को इस मामले की रिपोर्ट करना भी शामिल था। इस मामले में नरेश गोयल की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता शरण जगतियानी और अधिवक्ता प्रांजल अग्रवाल ने पैरवी की, जबकि बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ पेश हुए।
मामला क्या था?
यह विवाद बैंक ऑफ इंडिया द्वारा नरेश गोयल के बैंक खाते को धोखाधड़ी घोषित करने के फैसले से शुरू हुआ था। बैंक ने आरोप लगाया था कि नरेश गोयल ने अपने वित्तीय मामलों में गड़बड़ी की है और इसके आधार पर उनके खाते को धोखाधड़ी की श्रेणी में रखा गया। ऐसे मामलों में बैंक खाते को धोखाधड़ी घोषित करना एक गंभीर कदम माना जाता है, जिससे संबंधित व्यक्ति की वित्तीय छवि प्रभावित होती है और जांच एजेंसियों को भी कार्रवाई करने का अधिकार मिल जाता है।
उच्च न्यायालय का आदेश
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस फैसले को रद्द करते हुए कहा कि बैंक ऑफ इंडिया का निर्णय सही प्रक्रिया का पालन नहीं करता था। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना उचित जांच और ठोस सबूतों के बैंक खाते को धोखाधड़ी घोषित करना अनुचित है। इस आदेश में बैंक द्वारा की गई सारी कार्रवाई, जैसे केंद्रीय एजेंसियों को रिपोर्ट करना, भी निरस्त कर दी गई।
न्यायमूर्ति आर. आई. छागला ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी वित्तीय संस्थान को बिना स्पष्ट सबूतों के ग्राहक के खाते को धोखाधड़ी घोषित करने का अधिकार नहीं है। साथ ही, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बैंक को अपने निर्णय में सावधानी बरतनी चाहिए और ग्राहकों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
पक्षकारों की भूमिका
इस मामले में नरेश गोयल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शरण जगतियानी और अधिवक्ता प्रांजल अग्रवाल ने बहस की। उन्होंने कोर्ट को यह विश्वास दिलाया कि गोयल के खिलाफ बैंक के आरोप बेबुनियाद हैं और बैंक ने बिना उचित प्रक्रिया के कार्रवाई की है। उन्होंने यह भी बताया कि ऐसे फैसले से नरेश गोयल की प्रतिष्ठा को काफी नुकसान पहुंचा है।
वहीं, बैंक ऑफ इंडिया की ओर से अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ ने बैंक के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किए थे, लेकिन उच्च न्यायालय ने बैंक के निर्णय को ठोस सबूतों के अभाव में रद्द कर दिया।
इस फैसले का महत्व
यह निर्णय वित्तीय संस्थानों और उनके ग्राहकों के बीच संतुलन बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों को ग्राहक के खातों के संबंध में कोई भी निर्णय लेते समय उचित प्रक्रिया और कानूनी प्रावधानों का सख्ती से पालन करना होगा। बिना पर्याप्त सबूत के खाते को धोखाधड़ी घोषित करना न केवल ग्राहक के लिए नुकसानदायक है, बल्कि इससे बैंक की विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है।
निष्कर्ष
बॉम्बे उच्च न्यायालय का यह फैसला दर्शाता है कि न्यायपालिका वित्तीय संस्थानों की किसी भी मनमानी कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं करेगी। यह आदेश नरेश गोयल जैसे व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता है और वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने का संदेश देता है। ऐसे मामलों में न्यायालय की भूमिका महत्वपूर्ण होती है ताकि बिना कारण किसी भी व्यक्ति के वित्तीय हितों को नुकसान न पहुंचाया जाए। यह फैसला भविष्य में बैंकिंग क्षेत्र में ग्राहकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए मिसाल बनेगा।