अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपनी "अमेरिका फर्स्ट" नीति को केंद्र में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत को झटका दिया है। उन्होंने फार्मास्यूटिकल उत्पादों पर 100%, किचन कैबिनेट पर 50%, फर्नीचर पर 30%, और ट्रकों के आयात पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की है। हालांकि इस फैसले का उद्देश्य घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना बताया गया है, लेकिन इससे भारत समेत दुनिया के 10 बड़े फार्मा निर्यातकों को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
किन देशों को होगा सबसे ज़्यादा नुकसान?
ट्रंप के इस टैरिफ फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित वे 10 देश होंगे जो अमेरिका को फार्मास्यूटिकल उत्पाद एक्सपोर्ट करते हैं। इन देशों में आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, सिंगापुर, भारत, बेल्जियम, इटली, चीन, ब्रिटेन और जापान शामिल हैं।
2024 में अमेरिका ने करीब 234 बिलियन डॉलर की दवाएं आयात कीं, जिसमें आयरलैंड का हिस्सा सबसे ज्यादा (65.7 बिलियन डॉलर) रहा। भारत से अमेरिका को लगभग 13 बिलियन डॉलर का फार्मा निर्यात हुआ, जो कुल अमेरिकी इंपोर्ट का 6% और भारत के फार्मा एक्सपोर्ट का लगभग 31% है।
भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर प्रभाव
भारत की फार्मा इंडस्ट्री, विशेष रूप से जेनेरिक दवाओं के मामले में अग्रणी है। डॉ. रेड्डीज़, सन फार्मा, लुपिन और ऑरोबिंदो जैसी कंपनियां अमेरिका को बड़ी मात्रा में दवाएं निर्यात करती हैं।
हालांकि जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड या पेटेंटेड श्रेणी में नहीं आतीं, जिससे इन पर सीधा असर सीमित हो सकता है, लेकिन कैंसर और वजन घटाने जैसी महंगी ब्रांडेड दवाएं अब अमेरिका में दुगनी कीमत पर बिकेंगी। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और भारत की कंपनियों के कारोबार पर असर पड़ेगा।
अब क्या करेंगे भारतीय एक्सपोर्टर्स?
टैरिफ से बचने के लिए कई भारतीय फार्मा कंपनियां अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लगाने की योजना बना सकती हैं, जिससे उन्हें उत्पादन लागत और प्रशासनिक खर्च बढ़ाना होगा। इससे उनकी प्रतिस्पर्धा घट सकती है और मुनाफा प्रभावित हो सकता है।
ट्रंप का मकसद क्या है?
राष्ट्रपति ट्रंप का दावा है कि अमेरिका को फार्मा इंडस्ट्री में 115.5 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है।
उनका कहना है कि टैरिफ लगाने से:
लेकिन इसके साथ ही यह भी स्पष्ट है कि इस कदम से अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है, खासकर मेडिकल सेवाओं के क्षेत्र में।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप का यह टैरिफ फैसला राजनीतिक रूप से लोकप्रिय, लेकिन व्यवसायिक रूप से विवादास्पद माना जा रहा है। भारत समेत 10 प्रमुख फार्मा निर्यातकों को इससे झटका लगेगा, जबकि अमेरिकी उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य सेवाओं में महंगाई का सामना करना पड़ेगा।
आगामी अमेरिकी चुनावों के संदर्भ में यह फैसला ट्रंप के घरेलू वोटर्स को लुभाने का प्रयास हो सकता है, लेकिन वैश्विक व्यापार संतुलन के लिए यह चिंता का विषय बनता जा रहा है।