अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इज़राइल के प्रति अपने लंबे समय से चले आ रहे समर्थन से हटकर एक नई और कड़ी नीति अपनाई है। ट्रंप ने कहा है कि अब बहुत हो चुका है, और इज़राइल को वेस्ट बैंक पर कब्जा करने से रोकना होगा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे इज़राइल को वेस्ट बैंक पर कब्जा करने की इजाजत किसी भी कीमत पर नहीं देंगे, चाहे उनके प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से कितने भी घनिष्ठ संबंध क्यों न हों।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब इज़राइल ने हाल ही में वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों पर अवैध कब्जे की प्रक्रिया तेज़ की है, जिसे लेकर अरब देशों में भारी नाराजगी देखी जा रही है।
अरब देशों के दबाव में आया बदलाव
ट्रंप ने वाशिंगटन डीसी स्थित ओवल ऑफिस में मीडिया से बात करते हुए बताया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन के दौरान उनकी मुलाकात कई अरब देशों के नेताओं से हुई। इन नेताओं ने वेस्ट बैंक पर इज़राइल की बढ़ती पकड़ को लेकर गंभीर चिंता जताई।
अरब नेताओं के साथ चर्चा के बाद ट्रंप ने खुद इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से मुलाकात की और उन्हें स्पष्ट कर दिया कि उनकी प्राथमिकता गाजा पट्टी को लेकर समझौता करना होनी चाहिए, न कि गाजा या वेस्ट बैंक पर कब्जा।
फिलिस्तीन को मिल रही है वैश्विक मान्यता
गौरतलब है कि फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा समेत 10 देशों ने हाल ही में फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी है। यह कदम इज़राइल को रास नहीं आया और उसने इसके जवाब में वेस्ट बैंक पर कब्जा तेज करने का इरादा जताया।
अरब देशों ने इसे खतरनाक कदम करार देते हुए अमेरिका से हस्तक्षेप की मांग की थी। ट्रंप ने अब स्पष्ट संकेत दिया है कि वे इज़राइल की वेस्ट बैंक नीति को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
जर्मनी ने रोकी सैन्य सहायता
ट्रंप के इस नए रुख के अलावा इज़राइल को एक और झटका तब लगा जब उसका घनिष्ठ सहयोगी जर्मनी भी पीछे हट गया। जर्मनी ने न केवल फिलिस्तीन को सैन्य सहायता रोक दी, बल्कि वह अब हमास के साथ युद्धविराम को भी प्राथमिकता दे रहा है।
हालांकि जर्मनी ने फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता नहीं दी, लेकिन उसके रुख में आया बदलाव साफ इशारा करता है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव अब इज़राइल के खिलाफ बन रहा है।
शांति वार्ता को मिल सकता है मौका
अमेरिका खुद अभी तक फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता नहीं देता, लेकिन ट्रंप प्रशासन का मानना है कि अगर वेस्ट बैंक पर कब्जा रोका गया, तो इससे इज़राइल और हमास के बीच शांति वार्ता को गति मिल सकती है।
ज्ञात हो कि हमास ने 60 दिन के युद्धविराम की पेशकश की है और फिलिस्तीन के कुछ क्षेत्रों पर सरेंडर के संकेत भी दिए हैं। इस बदलते परिदृश्य में ट्रंप के बयान को एक संतुलित और दबाव में लिया गया फैसला माना जा रहा है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप का इज़राइल के प्रति यह बदला हुआ रवैया दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होते, बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक हित सर्वोपरि होते हैं। अरब देशों के दबाव, वैश्विक जनमत और बढ़ते तनाव के बीच ट्रंप का यह फैसला मध्य पूर्व में एक नए संतुलन की ओर इशारा कर सकता है।
अब देखना यह होगा कि इज़राइल इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है और क्या यह कदम स्थायी शांति की दिशा में एक नया मोड़ बन पाता है।